व्यापारी नेता वैश्य संगम महासचिव विपुल के प्रयास को मिलता रंग
कोरोना संक्रमण की महामारी ने गम्भीरता से सोचने को मजबूर कर दिया है की संक्रमित व्यक्ति का अन्तिम संस्कार परम्परागत रूप में लकड़ियों से जलाकर न हो सकता है। सुपुर्द-ए-खाक शव को जमीन में करने की व्यवस्था के लिए तो महाराष्ट्र के उच्च न्यायालय ने व्यवस्था दे दी की इसे जमीन में इस ढंग से सुपुर्दे-खाक किया जाए की वह निकला जाकर संक्रमण की सम्भावनाएं न हो सके। लकड़ियों के द्वारा शव वह भी संक्रमित के अंतिम संस्कार में वातावरण व इस क्रिया से सम्पर्क होने से संक्रमण की कही अधिक सम्भावना होती है।
संक्रमण ही नहीं अग्नि की भेंट लकड़ियों से करने से प्रर्यावरण प्रभावित होने तथा इससे पेड़ों की कटाई होने से बचने के लिए विद्युत शव दाह गृह या अब गैस आधारित शबदाह गृह की मांग लम्बे समय से होती रही है। विकास व जन सुविधाओं को नया आयाम देने के लिए विख्यात रहे मेरठ के उद्यमी एवं प्रथम नागरिक मेयर अरूण जैन द्वारा मेरठ नगर निगम बनते ही मेरठ को अप्रैल 1990 में विद्युत शवदाह गृह की सौगात दी थी। इसका संचालन नगर निगम के पास रहा पर अफसोस उस व्यक्ति के कार्यकाल के बाद इस शवदाह गृह को ग्रहण लग गया। उस समय पुरानी सोच व प्राचीन परम्पराओं से बंधे जनता जर्नादन पर उस समय के अन्तिम संस्कार कराने वालों की रोजी रोटी के प्रभावित होने के डर न इस शवदाह गृहकांे प्रर्याप्त शव की उपलब्धता न होने दी। इस शवदाह गृह के इस्तेमाल न होने व बढ़ते बिजली बिल की मार ने इस करोड़ की योजना की मशीन मोटर आदि को खुर्द-बुर्द कर दिया। केवल भवन ही चिढाये है।
कोरोना प्रकोप में दिल्ली में इस बीमारी से पीड़ित को सामान्य शव दाह में अन्तिम संस्कार की अनुमति न मिलने से हुई फजीहत से व्याकुल भारतीय वैश्य संगम के महामंत्री व्यापारी नेता विपुल सिंहल ने मण्डलायुक्त व नगरायुक्त नगर निगम को पत्र देकर कोरोना संक्रमण के शवों के अन्तिम संस्कार की समस्या से अवगत कराते सूरज कुण्ड अन्तिम संस्कार स्थल पर स्थित विद्युत शवदाह गृह के भवन को पुर्न जीवित करने इस शवदाह गृह को चालू कराने की मांग की। नगर निगम ने एक करोड़ का प्रस्ताव देकर इस मामले को ठंडा करने का प्रयास किया। इस पर सिंहल के प्रयास लकड़ी से अन्तिम संस्कार के साथ वैकल्पिक व्यवस्था में विद्युत या गैस आधारित या फिर दिल्ली व गाजियाबाद में हिण्डन किनारे ओएनजीसी की चिमनी आधारित कम लकड़ी मंे शव संस्कार करने की योजना से इस संक्रमण पीड़ित शव पर्यावरण के लिए चुनौती बनी लकड़ी से संस्कार विधि ही एक मात्र माध्यम को मेरठ में विकल्प दिलाने से जुटे है। विपुल सिंहल के प्रयास को गति मिली जब मेरठ महानगर के अध्यक्ष के सहयोगी राकेश शर्मा संक्रमित हुए और उसके चलते उनके पुत्र विमांशु का इस संक्रमण से ही मेरठ के बाद दिल्ली में इलाज कराते 8 मई को शव संस्कार मेरठ में संक्रमित के लिए संस्कार की व्यवस्था न होने के कारण संस्कार दिल्ली विद्युत शवदाह गृह में करना पड़ा।
सूरज कुण्ड स्थित संस्कार स्थल की व्यवस्था सम्भालने वाली गंगा मोटर कमेटी के पदाधिकारी दिनेश जैन द्वारा मेरठ को गैस आधारित शवदाह गृह लाने की बात कही है। उन्होंने उम्मीद की है की यह व्यवस्था शुरू करने में एक वर्ष लग जायेगा। इस गैस आधारित शवदाह को गरम करने मंे मात्र 35-45 दिन लगते है। शव संस्कार कराने वाले इस अवधि पूर्व सूचना पर इसे गरम किया जा सकेगा। उम्मीद है विद्युत शवदाह को बिल्डिंग ही इसमें काम आ जायेगी। बिजली संचालित चालू करने में अधिक खर्चा व उसके बिजली खर्च निकलने का अभी मेरठ में वातावरण नहीं है। गैस आधारित से लोग जब लकड़ी से अन्तिम संस्कार का मोह छोड़े तो फिर विद्युत शवदाह गृह के लिए बेहतर वातावरण व लोगों की जागरूकता मिल सकेगी।
बेहतर हो...
सामाजिक कार्यकत्र्ता एवं व्यापारी नेता तथा महामंत्री भारतीय वैश्य संगम विपुल सिंहल, अखिल भारतीय ट्रांसपोर्ट एसोशिएशन के श्री गौरव शर्मा पूर्व मंत्री संयुक्त व्यापार संघ ने ओएनसी को चिमनी आधारित अन्तिम संस्कार की योजना जो कि हिण्डन गाजियाबाद व निगम बोधघाट की भांति मेरठ के बाहरी हिस्सों में शवदाह स्थल की सुनिश्चिता कर चिमनी आधारित ओएनजी या गैस आधारित अन्तिम संस्कार व्यवस्था बनें।
सद्भावना समिति वरिष्ट नागरिक फोरम का मत
गंगा जल की पवित्रता को दृष्टिगत रखते हुए गंगा किनारे लकड़ी-उपलों से अन्तिम संस्कार व्यवस्था को पर्यावरण प्रदूषण दृष्टिगत भी हत्तोसाहित करते हुए यह चिमनी या गैस आधारित शवदाह गृह स्थापित कराने में उ0प्र0 सरकार पहल कराये। उ0प्र0 सरकार द्वारा अन्तिम संस्कार स्थलों की चार दिवारी कराने में जनता धन के सरकारी खजाने का यह सरकार व इससे पूर्ववर्ती सरकार मूंह खोल चुकी है।
वरिष्ट नागरिक फोरम के अध्यक्ष ब्रजभूषण का मानना है कि अन्तिम संस्कार स्थलों की व्यवस्था एवं रख-रखाव तथा शवाों के मृत्यु स्थल से शमशान तक पहुचवाने की व्यवस्था को पीपी माडल देते हुए सामाजिक संगठनों की भागीदारी से किसी प्राधिकरण या प्रदेश स्तर की निगरानी पर जिला व शहर ग्राम व्यवस्था स्थानीय निकायों व पंचायत की निगरानी का स्वरूप दिलाये। सामाजिक व्यवस्था बिखराव में शव के शमशान तक आना भी समस्या बनती जा रही है। सभी जगह गंगा मोटर कमेटी नहीं व सभी शव के शमशान लाने व अन्तिम संस्कार खर्च उठाने की बढ़ती समस्या से अनजान नहीं है। लावारिस शव को शमशान तक लाकर उनका संस्कार होने की आर्थिक व संस्कार करने की व्यवस्था भविष्य में बढ़ना स्वाभाविक है। संक्रमण कोरोना का हो या अन्य स्वरूप में बढ़ना ही है ऐसे शवों के संस्कार लकड़ी के माध्यम से होने की समस्या बनी रहनी है। इस कारण अन्तिम संस्कार व्यवस्था व स्थल की बेहतर व्यवस्था समय की मांग है।
अन्तिम संस्कार स्थलों का घनी आबादी से घिरना रूके
अन्तिम संस्कार स्थल वह किसी धर्म, जाति या साम्प्रदाय का हो अधिकतर घनी आबादी से घिर गये है या घिर रहे है। इनका आबादी के बीच होना कितना न्याय संगत है इस पर भी चिंतन होकर इन स्थलों के पास आबादी एक सीमा तक न हो सके इसके लिए व्यवस्था का होना भी जरूरी है। यह व्यवस्था यदि है तो उसका पालन क्यों नहीं। अग्नि द्वारा अन्तिम संस्कार के स्थल एक गांव या शहर में एक या बड़े शहर में एक से अधिक दिशाओं की ओर है परन्तु भूमि में दफन किए जाने की व्यवस्था में यह स्थल जाति सम्प्रदाय के हिसाब से शहरों व अन्य स्थानों पर बिखरे है। इन स्थलों के चारों ओर उन मत के लोगों के द्वारा कारोबार पर रोक नहीं है। इसका नमुना मेरठ में छिपी टैंक स्थित महिला महाविद्यालय के बराबर व सामने तथा उससे कुछ फासले पर देखा जा सकता है।
जगह-जगह मजार दरगाह
स्थान-स्थान पर कब्रिस्तानों के होते हुए भी शहर-शहर, कस्बों में स्थान-स्थान पर मजारों या दरगाह की बढ़ती संख्या पर नियंत्रण भी मंथन का विषय हैं। हम इन मजार या कब्र स्थलों की ही बात नहीं मंथन एवं नियंत्रण के विषय ही नहीं बल्कि बढ़ते धार्मिक स्थलों की बेलगाम संख्या भी है। इनमें अधिकांशतः सार्वजनिक स्थलों या किन्ही भूखण्डों को अवैध कब्जे करने की मकसद इस तरह के प्रयासों में कही अधिक है।
धार्मिक स्थलों एवं सांस्कृतिक एवं संस्कारों की उ0प्र0 सरकार ने इतिहास मान्यता की गणना तो कराई
इस वर्ष के प्रारम्भ व गत वर्ष के आखिर में उ0प्र0 सरकार द्वारा धार्मिक स्थलों एवं सांस्कृतिक व संस्कारों की प्रचलन व्यवस्थाओं का उनके इतिहास एवं मान्यता सहित विवरण अपनी सरकारी मशीनरी से गणना कराई। यह कार्य पूरा हुआ या नहीं इस बीच कोरोना महा संग्राम शुरू हो गया। यह विवरण इक्टठसा कराने का उद्देश्य इस महा संग्राम में दबा है। इसका इनके वैध अवैध व संरक्षित होने वाले संरक्षित करते हुए कम से कम इसके बाद इनमें वृद्धि न हो इसके प्रयास होने समय की मांग है, ताकि सामाजिक टकराव व सरकारी भूमि का अतिक्रमण रूक सके।